Home राजनीति कमलनाथ के विभीषण बने भाजपा के चाणक्य !

कमलनाथ के विभीषण बने भाजपा के चाणक्य !

छिंदवाड़ा कांग्रेस पर एकाधिकार ने नही बनने दिए नेता

राजनीति पर नौकरशाही को हावी करना पड़ा भारी

छिंदवाड़ा। कमलनाथ की 45 साल की राजनैतिक विरासत आखिरकार शिकारपुर तक सिमटकर रह गई। 2024 का लोकसभा चुनाव में कमलनाथ ना ही अपनी विरासत बचा पाए और ना ही छिंदवाड़ा में अपनी साख को जिंदा रख पाए। इसके पीछे आखिर क्या कारण है इस बात विश्लेषण अब जरूरी है कि आखिर कमलनाथ की बनाई हुई इस विरासत को ढहाने में क्या खुद कमलनाथ जिम्मेदार है या फिर कमलनाथ के विभीषण भाजपा के लिए चाणक्य साबित हो गए। दरअसल 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले ही शिकारपुर में एक नए नेता कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ की एंट्री हो गई। नकुलनाथ विधानसभा चुनाव में सक्रिय रहे और नकुलनाथ की ने अपनी एक टीम तैयार की। जिस टीम ने विधानसभा चुनाव 2018 में भी काम किया। 2019 में लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव भी काम किया और फिर 2023 के विधानसभा चुनाव में भी कमलनाथ की रणनीतियां, खामियों और प्लानिंग पर इसी टीम ने काम किया। इस दौरान कमलनाथ के कई करीबी उनसे दूर हो गए या उन्हें दूर कर दिया गया। 2024 की यह इबारत 2018 से ही लिखना शुरू हो गई थी। जिसका नतीजा 2024 में निकलकर सामने आया कि कमलनाथ की राजनीतिक विरासत, कमलनाथ की छिंदवाड़ा में शाख और उनका भरोसा सब कुछ खत्म हो गया। आखिर कैसे पिछले 6 सालों में कमलनाथ को उनके ही जयचंदो ने खत्म कर दिया। आइए इस बात पर एक विश्लेषण करते हैं।

राजा के दरबारी पैर पड़वाने लगें तो ज्यादा दिन नहीं रहती राजगद्दी

2018 के विधानसभा चुनाव से पहले ही शिकारपुर में एक नई टीम दिखाई देने लगी थी। यह पूरी टीम कमलनाथ के पीए संजय श्रीवास्तव के संपर्क में थी। और ज्यादातर लोग संजय श्रीवास्तव के द्वारा ही शिकारपुर में एंट्री लेकर आए थे। विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस की जीत और कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद शिकारपुर और छिंदवाड़ा की राजनीति पर नौकरशाही हावी हो गई। धीरे-धीरे करके दीपक सक्सेना जैसे बड़े नेता जो हमेशा से ही कमलनाथ के लिए डटकर खड़े रहे उन्हें दूर किया जाने लगा। लोग अपने काम करवाने के लिए संजय श्रीवास्तव के पास जाने लगे और छिंदवाड़ा की राजनीति का केंद्र कमलनाथ या कांग्रेस के नेताओं की बजाए संजय श्रीवास्तव बन गए। लोग संजय श्रीवास्तव के पैर पड़ने लगे और अपने काम करवाने के लिए पीए से मिलने घंटो लाइन लगे। बड़ी बात यह है कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने वाले ज्यादातर नेता वह है जिन्हें संजय श्रीवास्तव ने शिकारपुर में एंट्री कराई या ज्यादातर नेता वह है जिन्हें संजय श्रीवास्तव ने शिकारपुर से दूर कराया। कुल मिलाकर 2018 के बाद से ही लगातार शिकारपुर और छिंदवाड़ा की राजनीति में नौकरशाही हावी हो गई। राजीव भवन में कांग्रेस के जिला अध्यक्ष से मिलने लोग नहीं आते थे। जबकि संजय श्रीवास्तव का एक ऐसी कमरा जिसका दरवाजा हमेशा ही बंद रहता था वहां लोग मिलने के लिए इंतजार करते नजर आते थे। कहीं ना कहीं यह नौकरशाही कांग्रेस की राजनीति को दीमक की तरह खत्म करती रही। और 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का झंडा उठाने के लिए कमलनाथ के पास नेता ही नहीं बचे।

विधानसभा चुनाव 2023 के बाद ही तय हो गई थी हार

विधानसभा चुनाव 2023 में छिंदवाड़ा को उम्मीद थी की मध्य प्रदेश में एक बार फिर कांग्रेस की सरकार बनेगी और कमलनाथ मुख्यमंत्री बनेंगे। यही कारण था कि लाडली बहना जैसी योजना होने के बाद भी छिंदवाड़ा की सातों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के विधायक को की जीत हासिल हुई। लेकिन मध्य प्रदेश में कांग्रेस केवल 66 सीट ही जीत पाई। इतनी प्रचंड हर के बाद यह बात तय हो गई थी कि अब नकुलनाथ का लोकसभा चुनाव जीतना लगभग नामुमकिन है। अटकले थी कि भाजपा किसी बड़े नेता को चुनाव में उतरेगी लेकिन 5 साल तक वरिष्ठ भाजपा के हाशिए पर रहे विवेक बंटी साहू को भाजपा ने टिकट दी। इससे कमलनाथ और नकुलनाथ को थोड़ी उम्मीद जागी।लेकिन शायद छिंदवाड़ा जिले की जनता तय कर चुकी थी कि अब कम से कम जिले का सांसद भाजपा से बनाया जाए। और इस काम में कमलनाथ के विभीषणों ने भाजपा के चाणक्य के रूप में काम किया जो लोग पिछले तीन चुनाव कमलनाथ और नकुलनाथ की योजनाओं पर काम करते रहे। उन योजनाओं की पोल इन विभीषण ने भाजपा के सामने खोल दी।

कमलनाथ की विरासत खत्म करने में किसकी क्या भूमिका….

सैय्यद जाफर – सबसे ज्यादा पहुंचाया नुकसान
कमलनाथ के विभीषण में सबसे बड़ा नाम लोकसभा चुनाव 2024 में सैयद जाफर का है। सैयद जाफर कोयलाचल के नेता रहे और जिला पंचायत के सदस्य व उपाध्यक्ष भी रहे। 2018 से पहले ही कमलनाथ ने पीएससी चीफ बनने के बाद सैयद जाफर को प्रदेश कांग्रेस का प्रवक्ता नियुक्त किया था। छिंदवाड़ा की राजनीति से भोपाल की राजनीति में एंट्री करने के बाद सैयद जाफर ने 2018 के विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । 2019 के लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव में शिकारपुर की पूरी रणनीति पर काम किया। 2023 के चुनाव में भी कमलनाथ के हर कदम को जानने में कामयाब रहे। सैयद जाफर को पता था कि कमलनाथ किस तरह से चुनाव लड़ते हैं। इसके अलावा सैयद जाफर के संपर्क छिंदवाड़ा जिले में पार्षदों से लेकर सभी विधायकों के साथ थे। छिंदवाड़ा कांग्रेस के नेताओं को भाजपा में ले जाने में सबसे बड़ी भूमिका सैयद जाफर ने निभाई। इसके अलावा सैयद जाफर भाजपा के लिए चाणक्य साबित हुए। इसका कारण यह था कि सैयद जाफर कमलनाथ की चुनाव रणनीति को जानते थे। सैयद जाफर ने ही बीजेपी का संपर्क छिंदवाड़ा के सभी विधायकों से करवाया। इसके अलावा कमलनाथ की कौन सी कड़ी कमजोर है इस पर सैयद जाफर ने भोपाल में बैठकर भाजपा के साथ मिलकर काम किया।

दीपक सक्सेना – कांग्रेस को डैमेज कर गए
कमलनाथ की विरासत खत्म करने में दूसरा सबसे बड़ा नाम है दीपक सक्सेना का। दीपक सक्सेना की पैठ कांग्रेस नेताओं में कमलनाथ के बाद पूरे जिले में सबसे ज्यादा थी। दीपक सक्सेना न सिर्फ छिंदवाड़ा विधायक रहे बल्कि वह कमलनाथ के बाद जिले के भी सर्वमान्य नेता माने जाते रहे। दीपक सक्सेना का भाजपा में जाना और फिर भाजपा के लिए पूरा समर्पित होकर काम करना कमलनाथ को भारी पड़ गया। दीपक सक्सेना ने छिंदवाड़ा शहर छिंदवाड़ा ग्रामीण सहित जिले के कई विधानसभा क्षेत्र में अपने समर्थकों को डैमेज किया। और कमलनाथ की विरासत को खत्म कर दिया। कमलनाथ दीपक सक्सेना को नहीं मना पाए इसका कारण यह है कि दीपक सक्सेना पहले ही भाजपा में जाने का मन बना चुके थे। इसका एक कारण और भी है की विवेक बंटी साहू कभी दीपक सक्सेना के सबसे खास हुआ करते थे तो यह पुरानी दोस्ती इस बार कमलनाथ के लिए खतरा बन गई। दीपक के ही कहने पर अमित सक्सेना भी भाजपा में आ गए।

बंटी पटेल – टिकट न देना कमलनाथ की गलती
चौरई क्षेत्र के युवा नेता चांद और बिछुआ में खासी पैठ रखने वाले बंटी पटेल 2018 से ही चौरई विधानसभा से टिकट की मांग कमलनाथ से कर रहे थे। लेकिन कमलनाथ ने 2018 में तो जैसे तैसे बंटी पटेल को मना लिया। और जब 2023 में बंटी पटेल ने फिर से यह बात रखी उसके बाद भी कमलनाथ ने चौरई विधानसभा से सुजीत चौधरी को ही टिकट दे दी। इस बात से नाराज बंटी पटेल ने निर्दलीय चुनाव लड़कर लगभग 19000 वोट लिए यह कमलनाथ की सबसे बड़ी गलती थी। एक युवा नेता कमलनाथ ने खो दिया जो जुझारू भी था और कमलनाथ के लिए समर्पित भी। आखिरकार कांग्रेस से निष्कासित बंटी पटेल ने अपने समर्थकों के साथ भाजपा ज्वाइन कर ली और विवेक बंटी साहू के चुनाव में बंटी पटेल ने महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई। कमलनाथ चौरई क्षेत्र में बंटी पटेल का कोई विकल्प नहीं तलाश पाए।

अज्जू ठाकुर – कांग्रेस खत्म कर भाजपा को जिताया
पांढुर्णा जिले के कारोबारी और कांग्रेस की कमान संभालने वाले नेता अज्जू ठाकुर ने भी अपनी पूरी टीम और नगर पालिका के साथ भाजपा का दामन थामा। पांढुर्णा कांग्रेस के ज्यादातर लोग अज्जू ठाकुर के करीबी माने जाते रहे। यहां तक की पांढुर्णा कांग्रेस के अध्यक्ष भी अज्जू ठाकुर के खास लोगों में शामिल है। इस बात का फायदा अज्जू ठाकुर ने उठाया और कांग्रेस को डैमेज कर भाजपा को फायदा पहुंचाया। बड़ी बात यह है कि कमलनाथ पांढुर्ना में अज्जू ठाकुर का कोई विकल्प नहीं ढूंढ पाए। इसके पीछे कारण यह भी है कि अब तक निलेश उईके को दो बार विधायक बनाने में अज्जू ठाकुर का विशेष योगदान भी रहा ।और कमलनाथ को अज्जू ठाकुर पर भरोसा भी था। लेकिन इस भरोसे पर सेंध उस समय पड़ गई जब अज्जू ठाकुर ने अपनी पूरी टीम के साथ भाजपा का दामन थाम लिया। और विवेक बंटी साहू के लिए तन मन और धन से काम किया।

मेयर और पार्षद – शहर कर दिया डैमेज
छिंदवाड़ा शहर के महापौर विक्रम आहके और लगभग 14 पार्षद व सभापति भाजपा में शामिल हो गए। चुनाव के ठीक पहले भाजपा में शामिल होने वाले इन पार्षद और सभापतियों में ज्यादातर लोग कमलनाथ के पीए संजय श्रीवास्तव के करीबी माने जाते हैं। जिन्होंने बीजेपी का दामन थामा। इन पार्षद और सभापतियों ने छिंदवाड़ा शहर में कमलनाथ को खासा नुकसान पहुंचाया। दीपक सक्सेना के साथ मिलकर हर बड़े परिवार में इन पार्षद और सभापतियों ने पैठ बनाई और अपने क्षेत्र में विकास का नाम लेकर भाजपा को वोट दिलवा दिया।

कमलनाथ – नकुलनाथ – नौकरशाही पर भरोसा…
अपनी विरासत खत्म करने के जिम्मेदार खुद कमलनाथ और नकुलनाथ भी है। जिन्होंने छिंदवाड़ा जिले में नेता नहीं बनने दिए। छिंदवाड़ा कांग्रेस पर एकाधिकार के चलते यहां नौकरशाही हावी रही।कमलनाथ और नकुलनाथ ने नेताओं की बजाय नौकरशाही के सहारे राजनीति करने का प्रयास किया। जो शायद कमलनाथ की सबसे बड़ी गलती है। आज कांग्रेस की स्थिति यह है कि जिले में अब कांग्रेस के नेताओं की कमी हो गई है। कारण यह भी है कि लोकसभा चुनाव 2024 में कमलनाथ हर विधानसभा में हारे जिससे कहीं ना कहीं विधायकों की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो गए। विधानसभा टिकटों के वितरण में कमलनाथ और नकुलनाथ ने किसी की भी नहीं सुनी। अपनी मर्जी से टिकटो का वितरण किया जिसका नतीजा यह निकला कि अब कमलनाथ के पास चंद कार्यकर्ताओं के अलावा जिले में पैठ रखने वाले नेता नहीं बचे।

लोकसभा चुनाव 2024
विश्लेषण…कांग्रेस…
अविनाश सिंह
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