Home अपना शहर एजुकेशन इंडस्ट्री – प्राइवेट स्कूलों की यूनिफार्म और किताबों का सच

एजुकेशन इंडस्ट्री – प्राइवेट स्कूलों की यूनिफार्म और किताबों का सच

पुस्तक मेले में खुली स्टेशनरी और यूनिफॉर्म बेचने वालों की पोल

सिलेबस बदलकर कर रहे मनमानी, जिम्मेदारों की आंखे बंद

दिव्य भारत समाचार ने लिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

छिंदवाड़ा। जिला प्रशासन और स्कूली शिक्षा विभाग ने एक पुस्तक और यूनिफॉर्म मेले का आयोजन स्थानीय एमएलबी स्कूल में किया। स्कूल खुलने के सवा महीने बाद लगाया गया मेला औचित्यहीन नजर आया लेकिन इस मेले ने प्राइवेट स्कूलों के कारोबार की पोल खोल कर रख दी है। किस तरह से प्राइवेट स्कूल पाठ्यक्रम बदलकर अभिभावकों को किताबों के महंगे सेट खरीदने के लिए मजबूर कर देते हैं। और किस तरह से यूनिफॉर्म में फेरबदल कर कई व्यापारियों को लाखों का नुकसान पहुंचा देते हैं। यह सच सामने आ गया है। प्राइवेट स्कूलों की मनमानी और शिक्षा को एक व्यापार बनाने का लगातार प्रयास जारी है। शिक्षा के नाम पर प्राइवेट स्कूल स्टेशनरी संचालक को और यूनिफॉर्म स्टोर के संचालकों से सांठगांठ कर करोड़ों का मुनाफा कमा रहे हैं। दूसरी तरफ वह व्यापारी लाखों के नुकसान में चले जाते हैं जिनका सरोकार प्राइवेट स्कूलों से नहीं है लेकिन वे इन स्कूलों के यूनिफॉर्म अपने संस्थान में रखकर बेचते हैं।

खुलेआम हो रहा यूनिफॉर्म घोटाला, देखें इंटरव्यू

एजुकेशन इंडस्ट्री में प्राइवेट स्कूल संचालकों ने अलग-अलग तरीके से मुनाफा कमाने का जरिया निकाल लिया है। अब प्राइवेट स्कूल संचालक केवल बच्चों की फीस तक की सीमत नहीं बल्कि जूते मोजे से लेकर टाई और ब्लेजर तक हर चीज में प्राइवेट स्कूल संचालक अपने तरीके से फेरबदल कर मुनाफा कमाते हैं। इस मामले में जब एक यूनिफॉर्म सेलर से बात हुई तो एक बड़ा खुलासा हुआ। दरअसल हर बार यह आरोप लगाते हैं कि स्कूल की यूनिफॉर्म में विशेष दुकान में ही मिलती है इसके पीछे कारण यह है कि स्कूल संचालक अपनी यूनिफॉर्म में कुछ इस तरह से फेरबदल करते हैं कि वह यूनिफॉर्म केवल एक ही दुकान संचालक के द्वारा तैयार कराई जाती है। स्कूल का स्टूडेंट किसी अन्य दुकान से जब भी कोई यूनिफॉर्म खरीदता है तो उसका पता स्कूल प्रबंधन को चल ही जाता है। और फिर अभिभावकों पर दबाव बनाया जाता है। यहां तक की अब स्कूल की यूनिफॉर्म में लगने वाले बटन में भी स्कूल का नाम अंकित है। जिसके चलते केवल वही व्यापारी यह यूनिफॉर्म तैयार करता है। जिसका सीधा संबंध स्कूल से होता है। इसके अलावा शहर के अन्य व्यापारी स्कूल यूनिफॉर्म बना भी ले तो उन्हें खासा नुकसान उठाना पड़ता है। यही वजह है कि स्कूल यूनिफॉर्म में यूनिफॉर्म सेलर और प्राइवेट स्कूल की मनमानी चल रही है। और यह यूनिफॉर्म जूते मोजे से लेकर टाई और ब्लेजर तक एक विशेष सेलर के पास ही मिलती है।

सीबीएसई की अनदेखी, प्रायवेट स्कूलों का अपना सिलेबस

सीबीएसई पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले स्कूलों के लिए सीबीएसई ने एक सिलेबस निर्धारित किया है। इसी सिलेबस के आधार पर प्राइवेट स्कूल अपने स्कूल की कक्षा में बच्चों को पढ़ा सकते हैं। लेकिन हालात यह है कि प्राइवेट स्कूल हर कक्षा में सीबीएसई सिलेबस के अलावा अपना कुछ अलग सिलेबस भी जोड़ देते हैं। जिसके चलते इस सिलेबस की किताबें छपाई जाती है और फिर अभिभावक को वही किताबें जो स्कूल के निर्देश पर छपी है खरीदनी पड़ती है। इसका फायदा सीधा स्कूल को मिलता है। जबकि बच्चों को इसका नुकसान उठाना पड़ता है। क्योंकि एक स्कूल से दूसरे स्कूल का सिलेबस बिल्कुल अलग होता है। और बच्चा जब दूसरे स्कूल में जाता है तो उसे कुछ और ही पढ़ाया जाता है। यह स्थिति इतनी दयानी है की एक शहर से दूसरे शहर में ट्रांसफर होकर जाने वाले बच्चों के लिए परेशानी बन गई है। हमने जब एक बुक सेलर का इंटरव्यू लिया तो उन्होंने साफ कहा कि देश में एक देश और एक पाठ्यक्रम होना चाहिए ताकि जम्मू कश्मीर का बच्चा जब दिल्ली आए तो उसे वही पाठ्यक्रम मिले जो जम्मू कश्मीर में पढ़ाया गया है और यही बात सटीक भी है।

पुस्तक मेले में हंगामा, भिड़े बुक सेलर और अभिभावक

जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग के द्वारा लगाए गए पुस्तक मेले में उसी बुक सेलर की स्टॉल पर हंगामा हुआ। जिस पर लगातार आरोप लगाते रहे हैं। पुस्तक मेले में भी एक अभिभावक ने जब डिस्काउंट को लेकर विवाद किया तो बुक सेलर भड़क गया। बाद में निर्धारित 5% डिस्काउंट देने पर जब अभिभावक ने किताबें खरीदी तो उसे किसी और बुक स्टोर का बिल थमाने को लेकर विवाद गर्मा गया। एक ही बुक सेट के लिए बुक सेलर ने तीन अलग-अलग बिल दिए इस मामले का खुलासा पुस्तक मेले में हुआ है। लेकिन पुस्तक मेले में मौजूद शिक्षा विभाग के अधिकारी इसी बुक सेलर की तारीफ करते नजर आए।

एजुकेशन इंडस्ट्री….अविनाश सिंह
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