Home राजनीति काउंटिंग काउंटडाउन और दलबदलु कांग्रेसियों की बढ़ती धड़कन !

काउंटिंग काउंटडाउन और दलबदलु कांग्रेसियों की बढ़ती धड़कन !

भाजपा चुनाव हारी तो दलबलुओं को किए कमिटमेंट पर संशय !

दल बदलना सत्ता का लालच, मजबूरी या कुछ और ?

छिंदवाड़ा। छिंदवाड़ा लोकसभा संसदीय सीट के लिए पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान संपन्न कर लिए गए। प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम मशीनों में कैद कड़ी सुरक्षा के बीच पहुंच गया है। लेकिन मतदान के बाद से ही दल बदलू कांग्रेसियों की धड़कनें लगातार बढ़ती दिखाई देने लगी हैं। आखिर किस कारण से इन्होंने कमलनाथ से बगावत कर ठीक चुनाव से पहले भाजपा का दामन थामा और भाजपा की तरफ से जो कमिटमेंट किए गए उन कमिटमेंट पर चुनाव हारने की स्थिति में क्या असर पड़ेगा ! इन सारे सवालों के जवाब अब 4 जून को ही मिल सकेंगे। लेकिन इसके पहले यह एक सवा महीने का इंतजार दलबदलू कांग्रेसियों के लिए कत्ल की रात जैसा साबित हो रहा है। क्योंकि दल बदलने वाले सभी कांग्रेसी विवेक बंटी साहू के खेमे से हैं। और बाकी भाजपा दूसरी तरफ खड़ी है। आखिर इन कांग्रेसियों ने अचानक कमलनाथ का साथ छोड़कर भाजपा का दामन क्यों थामा। इस संबंध में एक विश्लेषण के जरिए समझने का प्रयास किया जा सकता है जिसमें कुछ प्रमुख कांग्रेसियों को शामिल किया गया है।

दीपक सक्सेना – बंटी से पुरानी दोस्ती, शिकारपुर से दूरी

पूर्व कैबिनेट मंत्री दीपक सक्सेना 2018 में कमलनाथ के लिए चुनाव लड़े। कमलनाथ मुख्यमंत्री का चेहरा थे और सरकार बनने के बाद कमलनाथ के लिए दीपक सक्सेना को अपनी कुर्सी छोड़ना तय था। हुआ भी कुछ ऐसा ही लेकिन 2018 में कमलनाथ के लिए कुर्सी छोड़ने वाले दीपक सक्सेना को उम्मीद थी की लोकसभा का चुनाव लड़ने का मौका उन्हें मिल सकता है। लेकिन यहां पुत्र मोह भारी पड़ गया दरअसल कमलनाथ ने पहले ही अपनी संसदीय सीट के लिए अपना उत्तराधिकारी चुन लिया था। 2019 में कमलनाथ ने छिंदवाड़ा विधानसभा का चुनाव लड़ा और लोकसभा से कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ चुनाव मैदान में उतरे। इस बात का विरोध भी हुआ लेकिन सबसे बड़ी समस्या खड़ी हुई दीपक सक्सेना के सामने। दीपक का अब क्या। इस समय से दीपक सक्सेना की दूरियां शिकारपुर से बढ़ने लगी। बीच में कुछ विवाद भी हुए जिसका केंद्र दीपक सक्सेना के छोटे बेटे चुनमुन सक्सेना रहे। खास तौर से कमलनाथ के निज सचिव संजय श्रीवास्तव के साथ रोहना दरबार के संबंध लगातार खराब होते रहे। उसके बाद भी दीपक सक्सेना ने कमलनाथ का साथ नहीं छोड़ा। हालांकि इसको ऐसा भी समझा जा सकता है की 2023 में एक बार फिर मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार बनने की उम्मीद के चलते पाला बदलने का विचार इन्होंने त्याग दिया। लेकिन सरकार नहीं बनी फिर से भाजपा की सरकार बन गई। लोकसभा चुनाव का 5 सालों की खलिश निकालने में दीपक सक्सेना के पुराने साथी विवेक बंटी साहू ने मदद की। पहले तो चुनमुन की जॉइनिंग हुई और बाद में एक बेहतर कमिटमेंट के साथ दीपक सक्सेना को भी भाजपा में शामिल कर लिया गया। हालांकि दीपक सक्सेना को भाजपा में लाने का एक और बहुत बड़ा कारण यह भी है कि दीपक सक्सेना पूर्व कैबिनेट मंत्री चंद्रभान सिंह चौधरी का ऑप्शन विवेक बंटी साहू के लिए बने। विवेक बंटी साहू का यह फार्मूला कितना काम करेगा यह तो 4 जून का परिणाम ही तय करेगा लेकिन दीपक सक्सेना इस पूरे चुनाव में लोगों के निशाने पर नजर आए।

अज्जू ठाकुर – कारोबारी मजबूरी, और सियासी उम्मीद

विधानसभा चुनाव की ठीक पहले पांढुर्णा को एक नया जिला बना दिया गया। पांडूर्णा के नया जिला बनते ही यहां के नेताओं में सियासी उम्मीदें जागने लगी उनमें से एक नाम उज्जवल सिंह चौहान ऊर्फ अज्जू ठाकुर का भी है। बड़े शराब कारोबारी अज्जू ठाकुर ने भी भाजपा का दामन थामा हालांकि इसके पीछे कारण यह भी है कि पिछले चार-पांच सालों में अज्जू ठाकुर को कारोबार में खासा नुकसान उठाना पड़ा है। यहां तक की नगर पालिका के चुनाव के बाद से लेकर लगातार विधानसभा चुनाव तक अज्जू ठाकुर के शराब के कारोबार पर विजिलेंस कुंडली मारकर बैठी रही। और इसका कारण छिंदवाड़ा के वही नेता है जिन्होंने 5 साल अपना सिक्का छिंदवाड़ा में चलाया है। खैर अज्जू ठाकुर ने भाजपा क्यों ज्वाइन की इसके पीछे कारण यह भी है कि डॉक्टर मोहन यादव की सरकार बनते ही मोहन यादव का पांढुर्णा कनेक्शन सबके सामने आया। दरअसल अज्जू ठाकुर के जिस फार्म हाउस को आश्रम बनाकर एक संत विवेक जी रह रहे हैं मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव से उनके बड़े घनिष्ठ संबंध हैं। और इन संबंधों का फायदा कहीं ना कहीं अज्जू ठाकुर को भी मिला। गुरु की आज्ञा और नए जिले पांढुर्ना में सियासी उम्मीद के चलते अज्जू ठाकुर ने भाजपा का दामन थाम लिया। हालांकि उनके छोटे भाई प्रवीण ठाकुर पहले से भाजपा में जाने की तैयारी में थे और आज विवेक बंटी साहू के बड़े खास लोगों में शामिल हैं। लेकिन लोगों को उम्मीद नहीं थी की कमलनाथ ने जिन्हें प्रदेश स्तर पर पद देकर ऑब्लाइज किया वह अज्जू ठाकुर भाजपा में शामिल हो जाएंगे। लेकिन अचानक मुख्यमंत्री का दौरा और अज्जू ठाकुर का भाजपा में जाना लोगों के लिए आश्चर्य जनक साबित हुआ। खैर पांढुर्णा का यह चेहरा भी विवेक बंटी साहू के खेमे की ही पार्टी है जिनका भविष्य भी 4 जून के बाद ही तय होगा।

अमित सक्सेना – भतीजे की घुट्टी ने बनाया भाजपाई

अमित सक्सेना कांग्रेस के बड़े नेता माने जाते रहे हैं। एक पूरा क्षेत्र का नेतृत्व करने वाले अमित सक्सेना के पास जमीनी राजनीति का हुनर है। लेकिन अचानक अमित सक्सेना भाजपा में क्यों चले गए। इसके पीछे जब जानकारी जुटाने का प्रयास किया गया तो पता चला कि अमित सक्सेना विधानसभा चुनाव के पहले से ही शिकारपुर से नाराज चल रहे थे। विधानसभा चुनाव में भी ज्यादा सक्रिय नजर नहीं आए। बावजूद इसके उनका भाजपा में जाने का कोई मन नहीं था लेकिन अमित सक्सेना की इस खालिश पर भतीजे चुनमुन सक्सेना ने पेट्रोल डाला और आग भड़का दी। नतीजा यह निकला कि भाजपा ज्वाइन करने के लिए अमित सक्सेना 2 दिन तक भोपाल में डटे रहे और आखिरकार तीसरे दिन उन्हें भाजपा ज्वाइन कराई गई। सुनने में यह भी आ रहा है कि पहले तो भाजपा नेतृत्व ने उन्हें भाजपा में लाने से मना कर दिया था। लेकिन बाद में चुनमुन सक्सेना भोपाल पहुंचे और उनके कहने पर अमित सक्सेना को गमछा पहनाया गया। भाजपा ज्वाइन करने के बाद भी अमित सक्सेना विवेक बंटी साहू के चुनाव प्रचार में कहीं नजर नहीं आए। इससे भी बड़ी बात यह है कि हमेशा से अपने बड़े भाई दीपक सक्सेना के सामने अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने वाले अमित सक्सेना एक बार फिर बड़े भाई दीपक सक्सेना और भतीजे चुनमुन सक्सेना के पीछे आकर खड़े हो गए हैं। ले देकर जो स्थिति कांग्रेस में थी वहीं अब भाजपा में है। अब तो समस्या यह भी है कि 4 जून के बाद भाजपा का नेतृत्व उन्हें स्वीकार करेगा भी कि नहीं यह भी संशय का मसला है। यही कारण है कि हालिया भाजपाइयों के दिल की धड़कनें बड़ी हुई है।

राजा कमलेश शाह – लालबत्ती का सपना साकार करने का प्रयास

चुनाव के ठीक पहले दल बदलने वाले कांग्रेसियों में एक और बड़ा नाम हर्रई जागीर रियासत के राजकुमार राजा कमलेश शाह का भी है। जो लगातार तीन बार से कांग्रेस विधायक रहे और कमलनाथ के सबसे बड़े करीबी माने जाते रहे। यहां तक के अमरवाड़ा के कांग्रेसी नेताओं में विरोध होने के बाद भी कमलनाथ ने कमलेश शाह को ही अमरवाड़ा विधानसभा की टिकट दी। राजा कमलेश शाह बीजेपी ज्वाइन करने के एक दिन पहले तक नकुलनाथ का प्रचार करते नजर आए। हालांकि सुनने में यह आ रहा है कि राजा कमलेश शाह से पिछले 15 दिनों से भाजपा की बातचीत चल रही थी और आखिर में मामला लाल बत्ती पर आकर तय हुआ। यही कारण है कि राजा कमलेश शाह ने आनन फानन में विधायकी से इस्तीफा दे दिया। ताकि वह उपचुनाव लड़कर मंत्री बन सके। हालांकि एक संभावना यह भी थी कि आचार संहिता खत्म होते ही राजा कमलेश शाह को मंत्री बना दिया जाए और फिर राजा कमलेश शाह अमरवाड़ा विधानसभा का चुनाव मंत्री रहते हुए लड़े। एक संभावना यह भी बनी थी कि लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में अमरवाड़ा विधानसभा का उपचुनाव कराया जा सकता है। लेकिन छिंदवाड़ा लोकसभा में हुए मतदान के बाद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इस बात को दिमाग से निकाल दिया। अब जो भी होगा वह चुनाव परिणाम आने के बाद ही होगा। चुनाव परिणाम ही तय करेंगे की दल बदलू कांग्रेसियों का कमिटमेंट पूरा होता है या वे ठगे जाते हैं।

पार्षद, सभापति – मलाई खाने की चाहत में दलबदल

नगर निगम के चुनाव में छिंदवाड़ा शहर की जनता ने भाजपा के नेतृत्व को नकारते हुए कांग्रेस को मौका दिया था। कांग्रेस के 28 पार्षद चुने गए थे और महापौर भी कांग्रेस के बने। लेकिन लोकसभा चुनाव के ठीक पहले लगभग 14 कांग्रेसी पार्षद और सभापति भाजपा में शामिल हो गए। जिनमे वह लोग भी शामिल है जिन्हें कभी शायद टिकट भी नहीं मिलती। लेकिन अब सवाल है शहर सरकार का नगर निगम एक ऐसा संस्थान है जो भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है। यहां अधिकारी से लेकर कर्मचारी और महापौर से लेकर पार्षद तक सभी का कमीशन फिक्स है। यही कारण है कि कामों की गुणवत्ता खराब होती चली जा रही है। कई कार्य है जो स्वीकृति से पहले ही कर दिए जाते हैं और पूरी नगर निगम को एक अधिकारी के इशारे पर चलाया जाता है। लेकिन भाजपा की सरकार और कांग्रेस की नगर निगम में इस मलाईदार विभाग में रहना और माल कामना संभव नहीं था। यही कारण है कि ज्यादातर पार्षद और सभापतियों ने भाजपा का दामन थाम लिया। क्योंकि सरकार भाजपा की है। अब जैसे ही चुनाव की आचार संहिता खत्म होती है नगर निगम में भाजपाइयों का बोलबाला एक बार फिर शुरू हो जाएगा। नगर निगम में रुपए आने लगेंगे और पार्षद और सभापतियों का रोजगार शुरू हो जाएगा। इसके अलावा और कोई भी कारण पार्षद व सभापतियों के कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में जाने का समझ नही आता।

विश्लेषण….अविनाश सिंह
9406725725