कमलनाथ को कमलेश शाह से ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगे दीपक
45 साल सबसे करीबी और पारिवारिक रिश्ते का अंत
छिंदवाड़ा। पूर्व कैबिनेट मंत्री दीपक सक्सेना गुरुवार को ही रात में भोपाल रवाना हो गए। शुक्रवार की सुबह उनके छोटे बेटे चुनमुन सक्सेना एक काफिले के साथ भोपाल गए। और आज रात 7:00 बजे तक दीपक सक्सेना भाजपा के हो जाएंगे। दीपक सक्सेना ने 45 साल के अपने रिश्ते को दरकिनार कर कमलनाथ के सुदामा बनने से ज्यादा बंटी साहू का कृष्ण बनना बेहतर समझा। कृष्ण बनने की चाहत में दीपक ने कमलनाथ के साथ 45 साल का सबसे करीबी और पारिवारिक रिश्ता तोड़ दिया। एबवे बंटी के सारथी बनते हैं या सलाहकार यह तो चुनाव का रन ही बताएगा जब कल के बाद दीपक सक्सेना भगवा गमछा पहने हुए बंटी साहू के लिए वोट मांगते नजर आएंगे और क्या लोग और उनके समर्थक उन्हें उसे इस रूप में देख पाएंगे। या दीपक सक्सेना के करीबियों और समर्थकों के लिए भी धर्म संकट खड़ा हो जाएगा।
दीपक सक्सेना के शहर में भी गहरे रिश्ते, रोहना के आसपास भी दबदबा
पहले अमरवाड़ा विधायक कमलेश शाह ने कमलनाथ का साथ छोड़ा और अब भाजपा ने कमलनाथ के घर में सबसे बड़ी सेंध दीपक सक्सेना को भाजपा में शामिल करके लगा दी है। दीपक सक्सेना पहले ही कांग्रेस से इस्तीफा दे चुके थे और भाजपा में शामिल होने का मन बना चुके थे। कमलनाथ के लिए दीपक सक्सेना कमलेश शाह से ज्यादा नुकसानदायक साबित हो सकते हैं। इसका कारण यह है कि छिंदवाड़ा में कमलनाथ के बाद दीपक सक्सेना ही यह ऐसे शख्स है जिनका दबदबा सबसे ज्यादा रहा है। शहर में उनके कई करीबी मित्र भी है और कई परिवारों में उनका पारिवारिक संबंध है। इतना ही नहीं दीपक सक्सेना का दबदबा रोहना और आसपास के क्षेत्र में भी अच्छा खासा है जो कमलनाथ के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
एक बेटे को दुखी और एक को खुश कर गए दीपक
दीपक सक्सेना ने भाजपा में शामिल होकर केवल कमलनाथ के 45 साल के विश्वास को ही पीठ नहीं दिखाई है बल्कि वह अपने घर में भी पारिवारिक संबंधों को संभालने में नाकाम रहे। दीपक सक्सेना अपने छोटे बेटे चुनमुन के कहने पर भाजपा में गए जबकि उनके बड़े बेटे जय सक्सेना आज भी कमलनाथ के साथ खड़े है। उन्होंने साफ कर दिया है कि वह आखिर तक कमलनाथ और नकुलनाथ के साथ रहेंगे दीपक सक्सेना ने भाजपा में जाकर अपने एक बेटे को दुखी और एक को खुश कर दिया आज जब रोहना से काफिला निकला तो अजय चुनमुन सक्सेना की खुशी का ठिकाना नहीं था वही जय सक्सेना मायूस बैठे थे।
इससे भी बड़ी बात यह है कि जय सक्सेना ही अपने पिता की राजनैतिक विरासत को आगे ले जा रहे थे । राजनीति में लगातार सक्रिय थे जबकि चुनमुन सक्सेना कारोबार में सक्रिय थे फिर भी दीपक सक्सेना ने चुनमुन का साथ दिया।
विश्लेषण… अविनाश सिंह
9406725725