सोनू मागो ही रहेंगे अब एक साल तक निगम अध्यक्ष
भाजपा में नेता अनकंट्रोल, खेमे बने अखाड़े
छिंदवाड़ा। मंगलवार को नगर निगम में चला राजनीतिक ड्रामा भाजपा की पोल खोल गया। सत्ता, सांसद संगठन और जिले के हजारों कांग्रेसियों को भाजपा में शामिल करने के बाद भी भाजपा के नेता कंट्रोल में नहीं हैं। भाजपा में सत्ता से लेकर जनप्रतिनिधियों तक अलग-अलग खेमे अखाड़े बने हुए हैं। एक दूसरे की टांग खींचने के फेर में भाजपा केवल 14 पार्षदों के साथ नगर निगम में अध्यक्ष बने बैठे कांग्रेस के सोनू मांगों को तक नहीं हटा पा रही है । अब यह हाल छिंदवाड़ा जिले में भाजपा के हैं। जबकि भाजपा के जनप्रतिनिधि और संगठन के नेता जिले के विकास और सत्ता की योजनाओं का ढिंढोरा पूरे जिले में पीटते नजर आ रहे हैं। लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेसियों को भाजपा में शामिल करने की गंगा बहाकर भाजपा ने नगर निगम तो हथिया ली लेकिन नगर निगम की गुटबाजी खत्म करने में आज भी नाकाम है। लोकसभा चुनाव में जहां सवा लाख से भी ज्यादा वोटो से सांसद विवेक बंटी साहू को जिताया गया वहीं भाजपा अब केवल सात वोटो से नगर निगम का अध्यक्ष पद गंवा देती है। केवल 4 महीने में ऐसा क्या हुआ कि भाजपा जिले में बिछड़ती नजर आ रही है। 8 अक्टूबर को नगर निगम में 34 पार्षदों वाली भाजपा को केवल 27 वोट मिले और अविश्वास प्रस्ताव शर्मनाक रूप से फेल हो गया । इस मामले में विभीषण कौन बना यह तो गुप्त वोटिंग में डिब्बे में कैद हो गया । लेकिन जिले का पावर सेंटर हथियाने की होड़ में भाजपा नेताओं के खेमे अखाड़े बनते दिखाई दिए। एक तरफ सांसद दूसरी तरफ जिला भाजपा अध्यक्ष तीसरी तरफ पूर्व कैबिनेट मंत्री चौधरी चंद्रभान सिंह और अब चौथा खेमा कांग्रेस के पुराने कद्दावर नेता जो भाजपा में शामिल हो गए दीपक सक्सेना का नजर आया । इसके अलावा भी कई नेता इन सबसे अलग अपनी राजनीति कर रहे हैं। लेकिन झगड़ा है पावर सेंटर का कि जिले में अपनी अब कौन चलाएगा जिसकी लड़ाई नगर निगम में दिखाई दी।
अविश्वास प्रस्ताव गिरने से किसको फायदा ?
नगरनिगम में फिलहाल भाजपा के पास 34 पार्षद है उसके बाद भी अविश्वास प्रस्ताव फेल हो जाता है। आखिर अविश्वास प्रस्ताव गिरने से भाजपा के किस बड़े नेता को फायदा हुआ। यह बात अब सवाल बनकर उभरने लगी है। आखिर जिले के सांसद विवेक बंटी साहू, जिला भाजपा अध्यक्ष शेषराव यादव और दीपक सक्सेना भाजपा पार्षदों में संतुलन क्यों नहीं बना पाए। जबकि ज्यादातर पार्षद विवेक बंटी साहू के समर्थक है तो कांग्रेस से टूट कर 14 पार्षद पूर्व कैबिनेट मंत्री दीपक सक्सेना के समर्थक है। इन हालात में भी विजय पांडे को केवल 27 वोट मिलते हैं । अब सवाल यह उठता है कि नगर निगम में अध्यक्ष का पद किसके लिए महत्वपूर्ण था और अध्यक्ष का पद न मिलने से किसको फायदा हुआ है। स्वाभाविक सी बात है कि नेताओं के बीच संतुलन बनाना भाजपा संगठन सहित सभी बड़े नेताओं का काम था। लेकिन भाजपा पार्षदों के बीच संतुलन बनाने में भाजपा संगठन के अलावा आला नेताओं ने ज्यादा रुचि नहीं दिखाई। जिसका नतीजा यह निकला की अविश्वास प्रस्ताव बुरी तरह से गिर गया । अब इसका फायदा किसको मिलेगा जिसके लिए अविश्वास प्रस्ताव गिरने का खेल भाजपा नेताओं के बीच ही खेला गया है।
सोनू मागो फिर एक साल के लिए अध्यक्ष

प्रदेश सरकार ने हाल ही में एक आदेश जारी किया है। जिसमें नगरीय निकायों के अध्यक्षों का कार्यकाल अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए 3 साल का कर दिया गया है। पहले कार्यकाल 2 साल का था । 2 साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता था। लेकिन यह आदेश फिलहाल नगर निगम के लिए प्रभावी नहीं है। यह बात पता चलते ही जिले के भाजपा नेताओं ने 27 सितंबर की रात 12:00 बजे तक कलेक्टर कार्यालय में बैठकर अविश्वास प्रस्ताव पर पार्षदों की सहमति बनाई और 8 अक्टूबर को अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग का दिन तय किया गया। जो की बुरी तरह से गिर गया है । अब भाजपा को फिर से अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए 1 साल तक इंतजार करना पड़ेगा। नियम अनुसार भाजपा एक साल तक अध्यक्ष पद पर अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला सकती । इसके मायने यह है कि सोनू मागो आने वाले 1 साल तक नगर निगम के अध्यक्ष पद पर काबिज रहेंगे तब तक नगर निगम का कार्यकाल लगभग सवा 3 साल का पूरा हो चुका होगा। अब देखना यह है कि कांग्रेस की यह जीत कांग्रेस के पार्षदों और अध्यक्ष को विपक्ष की बेहतर भूमिका निभाने में मदद करती है। या शहर की समस्याओं पर कांग्रेस पार्षद और अध्यक्ष पहले की तरह चुप्पी साधे नजर आते हैं।
हमें तो अपने ने लूटा गैरों में कहां दम था…

भाजपा के वरिष्ठ नेता और शहर के दबंग नेता विजय पांडे की हालत अब यहां के रहे ना वहां के रहे जैसी हो गई है। अब उन पर यह शेर बड़ा ही सटीक बैठ रहा है कि “हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था, मेरी कश्ती थी वहां डूबी जहां पानी कम था” लोकसभा चुनाव के पहले जैसे ही नगर निगम में भाजपा ने अपना बहुमत पूरा कर लिया तो विजय पांडे को अध्यक्ष बनने की उम्मीद जाग गई । लोकसभा चुनाव में तन मन धन से विवेक बंटी साहू के लिए काम करने वाले विजय पांडे ने विधानसभा चुनाव में पूर्व सांसद नकुलनाथ से अपने बूथ में विवाद तक कर लिया । लोकसभा चुनाव में जीत के बाद विजय पांडे सांसद से लेकर जिला भाजपा अध्यक्ष , चौधरी चंद्रभान सिंह और दीपक सक्सेना के दरबार में भी हाजिरी लगाते नजर आए। लेकिन जब मौका आया अध्यक्ष बनने का तो किसी नेता की तीमारदारी काम नहीं आई पार्षदों ने ही खेल कर दिया । अविश्वास प्रस्ताव में भाजपा के पक्ष में अध्यक्ष को हटाने के लिए 27 वोट तो पड़े। लेकिन इनमें से भी कई वोट केवल दबाव के कारण डाले गए। निगम अध्यक्ष सोनू मागों को पद से हटाने के बाद विजय पांडे अध्यक्ष बनने के प्रबल दावेदार थे । यही कारण है कि अब तक उन्होंने नेता प्रतिपक्ष का पद भी नहीं छोड़ा था। विजय पांडे के हाथ आया मौका फिसल कर गिर गया। अब तो उनका नेता प्रतिपक्ष का तमगा भी कांग्रेस के किसी पार्षद को चला जाएगा।
अविश्वास प्रस्ताव विश्लेषण…अविनाश सिंह
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