Home Blog कांग्रेस से लीडरशिप गायब, हावी होने लगी हार की निराशा !

कांग्रेस से लीडरशिप गायब, हावी होने लगी हार की निराशा !

मुख्यमंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने कमलेश शाह का नामांकन भरवाया

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने देवरावेन भलावी को बनाया प्रत्याशी

छिंदवाड़ा। अमरवाड़ा उपचुनाव में नामांकन प्रक्रिया शुरू हुए 5 दिन से ज्यादा हो चुके भाजपा प्रत्याशी राजा कमलेश शाह ने मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीडी शर्मा की उपस्थिति में पर्चा भी दाखिल कर दिया। वहीं गोंडवाना ने भी एक बार फिर देव रावण भलावी को अमरवाड़ा उपचुनाव के लिए अपना प्रत्याशी घोषित किया है। लेकिन कांग्रेस अब तक प्रत्याशी की तलाश में ही लगी हुई है। आधा दर्जन नाम सामने होने के बाद भी कांग्रेस आज तक अपना प्रत्याशी तय नहीं कर पाई है। इस बात को लेकर मुख्यमंत्री ने कांग्रेस पर कटाक्ष भी किया है। उन्होंने कहा है कि उन्हें अब कांग्रेस पर दया आती है कि कांग्रेस एक उपचुनाव में जहां की उनका विधायक पहले चुना गया था। आज प्रत्याशी तक तय नहीं कर पा रही है। अमरवाड़ा विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस से चुने गए पूर्व विधायक राजा कमलेश शाह ने इस्तीफा दे दिया था। जिसके चलते अमरवाड़ा में उपचुनाव आगामी 10 जुलाई को संपन्न होंगे। इसके लिए इस बार राजा कमलेश शाह ने भाजपा की तरफ से पर्चा भरा है। इस उप चुनाव को भी भाजपा ने पूरी रणनीति के साथ लड़ने का फैसला लिया है। खुद मुख्यमंत्री और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राजा कमलेश शाह का पर्चा दाखिल करने अमरवाड़ा पहुंचे। मंगलवार को उन्होंने अपना पर्चा दाखिल कर दिया।

कांग्रेस तय नहीं कर पा रही प्रत्याशी, नकुलनाथ भी गायब

छिंदवाड़ा में कांग्रेस का नेतृत्व हमेशा से ही पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ करते चले आए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में उनके बेटे नकुलनाथ ने छिंदवाड़ा लोकसभा से चुनाव लड़ा उस समय मुख्यमंत्री खुद कमलनाथ थे। उसके बाद भी नकुलनाथ को जनता से उतना प्रतिसाद नहीं मिला जितना एक मुख्यमंत्री होते हुए चुनाव लड़ने के दौरान मिलना चाहिए था। इसका नतीजा यह निकला की 2024 के चुनाव में नकूलनाथ बुरी तरह से चुनाव हार गए। लगभग 1,13,000 वोटो से चुनाव हारने के बाद अब छिंदवाड़ा कांग्रेस में निराशा साफ दिखने लगी है। खुद छिंदवाड़ा जिले में राजनीति को जारी रखने की बात करने वाले नकुलनाथ भी गायब नजर आ रहे हैं। अमरवाड़ा में उपचुनाव है 5 दिन पहले से नामांकन प्रक्रिया शुरू है। लेकिन आज तक ना नकुलनाथ छिंदवाड़ा पहुंचे हैं और ना ही कमलनाथ की तरफ से कोई खास निर्देश छिंदवाड़ा को मिले हैं। साफ तौर से लीडरशिप की कमी कांग्रेस में नजर आने लगी है। नामांकन प्रक्रिया के 5 दिन बीत जाने के बाद भी कांग्रेस आज तक अमरवाड़ा उपचुनाव में अपना प्रत्याशी तय नहीं कर पाई है। जिला कांग्रेस कमेटी की स्थिति और ज्यादा बदतर है। हमेशा से ही निर्देशों की राह देखने वाली जिला कांग्रेस कमेटी पूरी तरह से ठप हो गई है। अब जिला कांग्रेस कमेटी ना निर्णय लेने की स्थिति में है और ना ही निर्देश। यही हाल रहे तो आगामी 5 सालों में कांग्रेस को सातों विधानसभा के प्रत्याशी तलाश करने में पसीने छूट जाएंगे।

1980 से खत्म किए नेता, कर्मचारियों के भरोसे चली

विरासतकमलनाथ से 1980 में छिंदवाड़ा लोकसभा का चुनाव लड़ा था। कमलनाथ यहां 1979 में ही आ गए थे। उस समय कांग्रेस में कई बड़े नेता थे लाल सुंदरलाल जायसवाल, कैलाश नारायण शुक्ल, देवीलाल शर्मा, रेवानाथ चौरे, बैजनाथ सक्सेना जैसे कई बड़े नाम छिंदवाड़ा में थे जो कांग्रेस की बागडोर को संभाले हुए थे। और इन नेताओं का पूरे जिले में दबदबा था। कोयलांचल के पगारा के लाला सुंदरलाल जायसवाल सालों से कोऑपरेटिव बैंक के अध्यक्ष थे और जिले की राजनीति में उनका बड़ा दखल था। 1979 में कमलनाथ छिंदवाड़ा आए और इन्हीं नेताओं के भरोसे 1980 का चुनाव जीता। लेकिन चुनाव जीतने के बाद कमलनाथ ने जिले के उन कद्दावर नेताओं को एक-एक करके खत्म करना शुरू कर दिया। 1981 में ही लाल सुंदरलाल जायसवाल को कोऑपरेटिव बैंक के अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया। और दीपक सक्सेना को अध्यक्ष बना दिया गया। कमलनाथ ने अपनी टीम तैयार की और वरिष्ठ नेताओं को खत्म करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे करके छिंदवाड़ा जिले के सभी पुराने कांग्रेसी नेता खत्म हो गए और कांग्रेस में कमलनाथ का एकाधिकार चलने लगा। बाद में जिला कांग्रेस कमेटी भी कर्मचारियों के भरोसे संचालित होती रही। और इन्हीं हालात में कमलनाथ ने 45 साल छिंदवाड़ा में राज किया। यहां से सांसद चुनते रहे छिंदवाड़ा नहीं कमलनाथ को एक बार मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया। लेकिन कमलनाथ उस पद को भी नहीं संभाल पाए। आज स्थिति है कि कमलनाथ को अब नेताओं की कमी खलने लगी है। जिले में कोई भी ऐसा बड़ा नेता मौजूद नहीं है जो पूरे जोश के साथ कांग्रेस का झंडा लेकर चल सके। और कमलनाथ और नकुलनाथ के नाम को आगे बढ़ा सके। कहीं ना कहीं यह स्थिति कमलनाथ ने खुद पैदा की है। इसका असर अब देखने को मिल रहा है जब कमलनाथ की विरासत ढहने लगी है।

राजनैतिक विश्लेषण …अविनाश सिंह

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