कमलनाथ ने गिनाया 45 साल में छिंदवाड़ा का विकास
बंटी साहू मोदी के नाम पर लड़ते रहे चुनाव
छिंदवाड़ा। छिंदवाड़ा लोकसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं और अब बारी है इस बात के विश्लेषण की की आखिर इस बार चुनाव में क्या नया देखने को मिला। क्या कमलनाथ को हर बार से ज्यादा चुनौतियों का सामना 2024 के लोकसभा चुनाव में करना पड़ा ? भाजपा किस आधार पर छिंदवाड़ा लोकसभा का चुनाव लड़ती रही ? और क्या संभावनाएं छिंदवाड़ा लोकसभा चुनाव की सामने दिख रही है ? छिंदवाड़ा लोकसभा का चुनाव 2024 में बड़ा ही रोचक रहा यह चुनाव रोचक इस कारण से भी बन गया कि भाजपा ने अपनी पूरी ताकत छिंदवाड़ा में झोंक दी। 15 दिन के इलेक्शन कैंपेन में मुख्यमंत्री इतनी बार छिंदवाड़ा आ गए कि लोगों को यह समझ ही नहीं आ रहा था कि डॉक्टर मोहन यादव मुख्यमंत्री है या कोई विधायक। इतना ही नहीं मध्य प्रदेश के कद्दावर नेता माने जाने वाले वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गी अमूमन छिंदवाड़ा में ही डटे रहे । सबसे बड़ी बात कांग्रेस से भाजपा में जाने वालों की जो कतार शुरू हुई तो चुनाव के चार दिन पहले तक कांग्रेस के बड़े चेहरे कमलनाथ के करीबी भाजपा में जाते रहे। इतना रोचक चुनाव कम से कम 45 साल के कमलनाथ के करियर में कभी सामने नहीं आया। कमलनाथ जिनके दरबार में लोग घंटो खड़े रहकर उनसे मिलने का इंतजार करते भी नहीं थकते थे । वह उनसे मुंह फेर कर भाजपा में चले गए । बहुत से तो इसलिए गए कि उन्हें अपने कारोबार चलाने थे। लेकिन कुछ ऐसे भी गए जिन्होंने अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाकर दल बदल कर लिया। इतना सब होने के बाद भी कमलनाथ आखिर तक टूटे हुए नजर नहीं आए। उन्होंने अपने बेटे नकुलनाथ के लिए यह चुनाव वैसे ही लड़ा जैसे उन्होंने सुंदरलाल पटवा से चुनाव हारने के बाद अपना चुनाव लड़ा था। कमलनाथ में अपने करीबियों के छोड़ कर जाने का दुख तो नजर आया लेकिन उसके साथ ही उनके अंदर एक ऊर्जा भी नजर आई जो कि इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति बना सकती है।
20 साल की भाजपा सरकार और छिंदवाड़ा का विकास
लोकसभा चुनाव में कमलनाथ ने अपने 45 साल के विकास के सफर को और छिंदवाड़ा वासियों से अपने संबंधों को चुनाव का प्रमुख आधार बनाया। कमलनाथ ने लोगों को बताया कि 45 साल पहले जो छिंदवाड़ा था उसके विकास में कमलनाथ का कितना बड़ा योगदान है। इसके गवाह इस जिले के वह लोग हैं जिन्होंने कमलनाथ को 1980 के बाद से लगातार छिंदवाड़ा में देखा है। इसके साथ ही कमलनाथ ने लोगों से अपने रिश्ते और संबंधों के आधार पर भी चुनाव को लड़ा। जबकि कमलनाथ के मुख्यमंत्री वाले कार्यकाल के 15 महीना को छोड़ दिया जाए तो लगभग 20 साल से मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है। उसके बाद भी भाजपा विकास के नाम पर छिंदवाड़ा में चुनाव नहीं लड़ पाई। आखिर क्या कारण है कि 20 साल से मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार होने के बाद भी छिंदवाड़ा में विकास की बात पर भाजपा प्रत्याशी और भाजपा नेता बगलें झांकते नजर आए और कमलनाथ खुलेआम लोगों को छिंदवाड़ा में 45 साल तक विकास का आयाम रचने की दुहाई देते दिखाई दिए। भाजपा ने अपने प्रचार के दौरान छिंदवाड़ा में केवल जुमलेबाजी की जबकि कमलनाथ विकास की एक-एक इबादत लोगों को गिनाते रहे। छिंदवाड़ा का यह लोकसभा चुनाव 20 साल की सरकार के बाद भी भाजपा केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और श्री राम मंदिर के निर्माण की दुहाई देकर लड़ती नजर आई है।
भाजपा के प्रमुख मंत्र चाल चरित्र और चेहरा पर लगा प्रश्नचिन्ह !
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपना मूल मंत्र चाल चरित्र और चेहरे को बनाया था। जिसके आधार पर लगभग पूरे देश में प्रत्याशी तय किए गए और चुनाव लड़ा जा रहा है। लेकिन छिंदवाड़ा में ऐसा क्या हुआ कि भाजपा का या मूल मंत्र चाल चरित्र और चेहरे पर ही प्रश्न चिन्ह लग गया। चुनाव प्रचार के दौरान ही एक वीडियो कांड शहर में हुआ जिसमें दो पत्रकारों की संदिग्ध भूमिका के अलावा कमलनाथ के निज सचिव भी लपेटे में आ गए। लेकिन इस कांड ने जितना कांग्रेस को डैमेज नहीं किया उससे कहीं ज्यादा भाजपा के प्रत्याशी पर सवाल खड़े हो गए। यह वीडियो कांड क्या था वीडियो सच्चा था या झूठा था यह तो वीडियो सामने आता तो ही समझ आता। लेकिन उसके पहले ही इस वीडियो कांड ने पूरे जिले में हल्ला मचा दिया। इसके अलावा ठीक मतदान के दिन भाजपा प्रत्याशी का बताते हुए एक ऑडियो भी शहर के कई मोबाइल में सुनाई दिया। और बड़ी बात यह है कि इस ऑडियो में दोनों आवाज़ जिसकी बताई जा रही है। दोनों ही ऐसे पदों पर आसीन है जो नेतृत्व के शिखर पर हैं। ऑडियो भी सच्चा है या झूठ है यह तो नहीं पता। लेकिन इस ऑडियो के बाद भाजपा के इस मूल मंत्र चाल चरित्र और चेहरे पर सवाल खड़े हो गए।
नकुलनाथ कागजों में, चुनावी चेहरा बने कमलनाथ
2024 के लोकसभा चुनाव की एक रोचक बात यह भी रही की यहां कांग्रेस के प्रत्याशी जिले के सांसद नकुलनाथ बनाए गए थे। लेकिन पूरे चुनाव में या बात केवल कागजों में नजर आई। नकुलनाथ अपना चुनाव प्रचार बड़े आराम से करते रहे और उन पर न भाजपा ने ध्यान दिया ना कमलनाथ ने। दरअसल यह चुनाव भाजपा और कमलनाथ के बीच लड़ा गया। भाजपा के प्रत्याशी भी केवल कमलनाथ पर आरोप प्रत्यारोप लगाते रहे और कमलनाथ जिले भर में घूम-घूम कर 45 साल का विकास गिनाते रहे। नकुलनाथ कभी कोर्ट में समोसे खाते नजर आते तो कभी आदिवासी के यहां चटनी रोटी का लुफ्त उठाते नजर आते रहे। पूरे चुनाव में ऐसा नजर आया जैसे नकुलनाथ अपने पिता कमलनाथ प्रचार में लगे हैं और चुनाव का उन पर कोई प्रेशर ही नही है। चेहरा तो चुनाव का कमलनाथ ही है। भाजपा के नेता जो चुनाव प्रचार में आए उन्होंने भी मंच में केवल कमलनाथ को ही चेहरा बनाकर रखा। भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं का छिंदवाड़ा में आने के बाद भी ऐसा लगा जैसे कमलनाथ ही चुनाव लड़ रहे हैं और भाजपा नकुलनाथ को भूल ही गई है।
संपादकीय विश्लेषण….
अविनाश सिंह
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