Home राज्य सजायाफ्ता भाजपा पार्षद पर मेहरबान जिला प्रशासन

सजायाफ्ता भाजपा पार्षद पर मेहरबान जिला प्रशासन

डोंगर परासिया नगर पालिका ने सभापति भी बनाया

राहुल गांधी की दो दिन में कर दी गई थी सदस्यता रद्द

छिंदवाड़ा।सैयां भय कोतवाल अब डर काहे का… यह कहावत छिंदवाड़ा जिले में शत प्रतिशत चरितार्थ होती नजर आ रही है। यहां जिसके ऊपर नेताजी का हाथ है उस पर कोई कानून असर नहीं करता। ऐसे कई मामले आए दिन जिले में सामने आते हैं। इस बार डोंगर परासिया नगर पालिका का एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें जनप्रतिनिधि कानून की धज्जियां जिला प्रशासन उड़ाता दिख रहा है। दरअसल मामला यह है कि डोंगर परासिया नगर पालिका परिषद के वार्ड नंबर 9 से पार्षद चुने गए एक भाजपा नेता को 3 साल की सजा न्यायालय ने सुना दी है। लेकिन 10 महीने बीत जाने के बाद भी जिला प्रशासन ने इस नेता का निर्वाचन शून्य घोषित नहीं किया। जबकि पूरे देश में ऐसे कई मामले हैं जहां बड़े-बड़े नेताओं के निर्वाचन और सदस्यता को चंद दिनों में शून्य घोषित किया गया है। दरअसल मामला डोंगर परासिया नगर पालिका परिषद से जुड़ा हुआ है। नगर पालिका के वार्ड नंबर 9 से पार्षद चुने गए आशीष जायसवाल वर्तमान में नगर पालिका के स्वच्छता सभापति भी है। आशीष जायसवाल के खिलाफ विशेष एट्रोसिटी न्यायालय छिंदवाड़ा में मारपीट और हमले का एक प्रकरण 2018 से चल रहा था । इस प्रकरण में न्यायालय ने दिसंबर 2023 में आशीष जायसवाल और उनके साथियों को अधिकतम 3 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा से दंडित किया है। इस मामले में बाकायदा परासिया एसडीएम ने 11 जनवरी 2024 को एक प्रतिवेदन छिंदवाड़ा कलेक्टर को भी सौंप दिया जिसमें कहा गया है कि जनप्रतिनिधि कानून के तहत पार्षद आशीष जायसवाल का निर्वाचन शून्य घोषित किया जाए। लेकिन जनवरी 2024 से लेकर आज 30 सितंबर 2024 तक इस पार्षद का निर्वाचन शून्य नहीं किया गया । जबकि नगर पालिका ने इस सजायाफ्ता भाजपा नेता को स्वच्छता सभापति तक बना दिया है। बताया जाता है कि आशीष जायसवाल भाजपा के किसी संगठन के पद पर भी आसीन हैं। जिसके कारण उन पर नियमानुसार कार्रवाई करने से जिला प्रशासन परहेज कर रहा है।

क्या कहती है जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8 (3) ?

संविधान किसी भी मामले में आरोपी को चुनाव लड़ने या किसी पद पर बने रहने से नहीं रोकता। यह तब तक जायज है जब तक की जनप्रतिनिधि किसी मामले का आरोपी है। लेकिन जैसे ही न्यायालय किसी जनप्रतिनिधि को सजा सुनाता है जो की 2 साल या उससे अधिक की सजा हो तो ऐसे जनप्रतिनिधि पर जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(3 ) के तहत कार्रवाई की जाती है। इस कानून के तहत यह कहा गया है कि जनता के द्वारा चुने गए किसी भी जन प्रतिनिधि जिसे न्यायालय ने दो साल या उससे अधिक की सजा से दंडित किया है । उसकी सदस्यता और निर्वाचन को शून्य किया जाएगा। और 5 साल तक उसे चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य भी घोषित किया जाएगा। नगर पालिका के मामले में यह करवाई करने का अधिकार कलेक्टर के पास है। परासिया के इस मामले में 9 महीने पहले ही एसडीएम प्रतिवेदन कलेक्टर को सौंप चुके हैं। लेकिन छिंदवाड़ा कलेक्टर ने आज तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की और एसडीएम का प्रतिवेदन फाइलों में दबा हुआ पड़ा है।

रईस खान का निर्वाचन 4 दिन में कर दिया था शून्य

कोयलांचल के परासिया के ही एक मामले में जनपद अध्यक्ष रईस खान को न्यायालय से सजा सुनाए जाने के बाद रईस खान की सदस्यता केवल चार दिनों में रद्द कर दी गई थी। उस समय रईस खान जनपद अध्यक्ष के पद पर पदस्थ थे लेकिन न्यायालय से सजा सुनाए जाने के बाद जिला प्रशासन ने आनन फानन में दो दिन के अंदर ही रईस खान का निर्वाचन रद्द कर दिया। इतना ही नहीं कांग्रेस में देश के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी को 2 साल की सजा सुनाए जाने के बाद उनकी संसद की सदस्यता को केवल दो दिनों में रद्द कर दिया गया था। ऐसे कई मामले देश में मौजूद है जहां न्यायालय से सजा मिलने के बाद जनप्रतिनिधियों को अपने पद से हटाया जाता है । और उनकी सदस्यता या निर्वाचन शून्य कर दिया जाता है। लेकिन छिंदवाड़ा एक ऐसा जिला है जहां एक ही जैसे मामलों में अलग-अलग कार्रवाई होती है।

विडंबना…अविनाश सिंह
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