आज से लागू हुए नए दंड कानून, पुलिस को दी गई ट्रेनिंग
आईपीसी, सीआरपीसी और एविडेंस एक्ट के नाम बदले
छिंदवाड़ा। भारत सरकार ने अंग्रेजों के बनाए 164 साल पुराने भारतीय दंड संहिता में बदलाव किया है। अब आईपीसी, सीआरपीसी और एविडेंस एक्ट के नाम के बदलाव के साथ ही कई धाराओं में बदलाव कर दिए गए हैं। कई नई धाराएं जोड़ने और कुछ धाराओं को डिलीट करने का काम भी किया गया है। यह नए कानून आज से यानी 1 जुलाई से प्रभावी भी हो गए। अब किसी की हत्या करने पर आरोपी के खिलाफ धारा 302 आईपीसी के तहत केस नहीं चलाया जाएगा। बल्कि उसके खिलाफ अब धारा 101 भारतीय न्याय संहिता के तहत प्रकरण चलाया जाएगा। ऐसे कई कानून में बदलाव कर दिए गए हैं। इसके साथ ही भारतीय दंड संहिता, (आईपीसी) का नाम बदलकर अब इसे भारतीय न्याय संहिता कर दिया गया। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को अब नागरिक सुरक्षा संहिता कहा जाएगा। और एविडेंस एक्ट का नाम बदलकर इसे भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता किया गया है। इस तरह से तीनों एक्ट में बदलाव कर इनमें से कई धाराएं डिलीट की गई है । कुछ धाराएं नई जोड़ी गई है और कुछ धाराओं के प्रावधान अन्य धाराओं के साथ जोड़ दिए गए है। यह कानून पूरे देश में लागू हो गया है। और पुलिस के लिए भी एक नई गाइडलाइन जारी की गई है। जिसके तहत पुलिस को अब ज्यादा सतर्कता और सावधानी के साथ किसी भी प्रकरण की जांच करनी होगी। उसकी एफ आई आर और उस प्रकरण के संबंध में की गई कार्रवाई को सावधानी पूर्वक करना पड़ेगा। छिंदवाड़ा में पहले ही पुलिस अधीक्षक मनीष खत्री के निर्देशन में सभी पुलिस अधिकारी कर्मचारी और जांच अधिकारियों को नए कानून की जानकारी देने के साथ ही विधिवत ट्रेनिंग भी दी जा चुकी है। अब पुलिस इन कानून की जानकारी के लिए स्कूल कॉलेज और सामाजिक संस्थाओं को भी प्रेरित करेगी।
धारा 302 के लिए 101, 307 के लिए 109 और 376 के लिए 63
164 साल पुराने भारतीय दंड विधान में बदलाव कर इसे भारतीय दंड संहिता के बजाय भारतीय न्याय संहिता का नाम दिया गया है जिसमें कई धाराओं में परिवर्तन किए गए जैसे अब हत्या करने पर धारा 302 आईपीसी की जगह धारा 101 बीएस लगेगी इसी तरह हत्या के प्रयास के लिए धारा 307 की बजाय धारा 109 बीएस लगाई जाएगी धारा 376 और 377 में से धारा 377 को हटा दिया गया है इस धारा 376 में ही मर्ज किया गया है और अब दुष्कर्म के लिए धारा 376 की बजाय धारा 63 भारतीय न्याय संहिता का इस्तेमाल कार्रवाई के लिए किया जाएगा इसी तरह से हंगामे के लिए धारा 144 की जगह 187 भारतीय न्याय संहिता, देशद्रोह के लिए 121 की जगह 145, राजद्रोह के लिए 124ए की जगह 150, एंटी नेशनल एक्टिविटी के लिए धारा 121 की जगह 146, मानहानि की के लिए 499 की जगह 354 भारतीय न्याय संहिता लगाई जाएगी। वहीं ठगी के लिए अब धारा 420 नहीं बल्कि धारा 316 के तहत केस चलेगा। ऐसी कई धाराओं में बदलाव किए गए हैं।
किस कानून में कितना किया गया बदलाव……
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता –
दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) का नाम अब भारतीय न्याय नागरिक संहिता (बीएनएसएस होगा) इसमें कुल 533 धाराएं रहेंगी सीआरपीसी की 160 धाराओं को बदल दिया गया है। 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 धाराओं को हटा दिया गया है।
भारतीय न्याय संहिता –
भारतीय दंड विधान (आईपीसी) का नाम अब भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) होगा। जिसमें 356 धाराएं होंगी। आईपीसी की 175 धाराओं में बदलाव किया गया है। और 8 धाराएं नई जोड़ी गई हैं। इसके अलावा आईपीसी की 22 धाराओं को नए कानून में हटा दिया गया है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम –
एविडेंस एक्ट अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम कहलाएगा इसमें 170 धाराएं होंगी। एविडेंस एक्ट में 167 धाराएं थी। इस एक्ट की 23 धाराओं में बदलाव किया गया है।
पुलिस करवाई में पारदर्शिता, करानी होगी फॉरेंसिक जांच
नएकानून में बदलाव के साथ पुलिस की जांच और कार्रवाई पर भी गाइडलाइन जारी की गई है। अब पुलिस एक डायरेक्ट ऑनलाइन एप के जरिए अपनी जांच, बरामदगी, और तलाशी जैसी कार्रवाइयों को मौके से ही अपलोड करेगी। ताकि पुलिस कार्रवाई में पारदर्शिता के साथ ही सही कार्रवाई कराई जा सके। पुलिस को अब किसी मामले में मकान की तलाशी, वहां की जांच मौके की जांच और साक्ष्य एकत्रित करने की कार्रवाई भी मोबाइल से वीडियो बनाकर डायरेक्ट ऑनलाइन एप में अपलोड करना पड़ेगा। इससे पुलिस के द्वारा की जाने वाली कार्रवाइयों में पारदर्शिता भी आएगी और पुलिस जांच में गड़बड़ी करने के झूठे आरोपों से भी बच सकेगी। इसके साथ ही ऐसे पुलिसकर्मी जो अक्सर जांच करवाई को प्रभावित करते हैं। उन पर भी लगाम लगाई जा सकेगी । इसके अलावा 7 साल की सजा से ज्यादा के प्रावधान वाले अपराध में पुलिस को फोरेंसिक जांच करना आवश्यक कर दिया गया है। हालांकि छिंदवाड़ा जिले में फिलहाल फोरेंसिक जांच की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसके लिए सागर या भोपाल जाना पड़ता है। लेकिन मेडिकल कॉलेज में जल्द ही यह सुविधा उपलब्ध होने की संभावना भी है।
1860 में लागू किया की गई थी भारतीय दंड संहिता
भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी भारत में 1860 में लागू किया गया। तब से लेकर अब तक भारत में यही कानून चल रहा था। आईपीसी अंग्रेजों के जमाने में लॉर्ड थॉमस बेबिंगटन मैकाले की अध्यक्षता में लागू किया गया। इसके पहले 1834 में इसे प्रथम विधि आयोग द्वारा तैयार किया गया और 1835 में इस कानून को गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया काउंसिल को सौंप दिया गया। भारतीय दंड विधान अपने आप में एक परिपक्व अधिनियम था। जिसमें हर सजा के लिए विशेष प्रावधान होने करने के साथ ही उस अपराध की सही सजा का निर्धारण भी किया गया था। 164 साल पुराने इस कानून में सरकार ने कई बदलाव किए लेकिन इस कानून को पूरा नहीं बदला गया। आज भी भारतीय दंड विधान के कई प्रावधान भारतीय न्याय संहिता में भी प्रासंगिक रहेंगे। अंग्रेजों के द्वारा बनाया गया यह कानून आगे भी भारतीय न्याय संहिता में एक आधार स्तंभ रहेगा। यह बड़ी बात है। आज से से 164 साल पहले जब अंग्रेजों ने न्याय दिलाने और अपराध की सजा देने के प्रावधान पर काम किया तो उन्होंने हर बारीकी का ध्यान रखा। उन्होंने एक जांच की प्रक्रिया निर्धारित की, उन्होंने न्याय को एक पृथक रूप में प्रासंगिक बनाया और पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए और अपराधी को सजा देने के लिए भी विशेष प्रावधान किया। इतना ही नहीं भारतीय दंड विधान में सीधी सजा का प्रावधान नहीं था और ना अब है। किसी अपराध के लिए अपराधी को दोषी ठहराए जाने की एक पूरी प्रक्रिया है। उस अपराधी को तभी उस अपराध की सजा दी जा सकती है जब यह साबित हो कि अपराधी ने अपराध किया है। भारतवर्ष में अंग्रेजों की गुलामी के दौरान बनाए गए ऐसे कानून भी अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुए। जिससे एक पूरी प्रक्रिया का संचालन एक बेहतर लोकतंत्र की स्थापना करने में सहायक हुआ।
विशेष खबर…अविनाश सिंह
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